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न्यायालय के बारे में
पन्ना रियासत के न्यायिक इतिहास में एक उल्लेखनीय घटना का जिक्र सुनने में आता है, जिसके अनुसार महाराजा छत्रसाल अपने राज्य में सभी मंत्रियों के साथ शासन व्यवस्था पर विचार-विमर्श कर रहे थे, उस समय राज्य के जन कल्याणकारी मसले पर सभी मंत्री व महाराजा एकमत थे। जब मंत्री ने योजना पर महाराज की सहमति (हां) चाही, तब धोखे से महाराजा के द्वारा ‘‘ना ही’’ शब्द उच्चारित हो गया, जिसपर मंत्री के द्वारा महाराजा से कहा गया कि हुजूर की तो सहमति थी, किन्तु ‘‘ना ही’’ हो गई, जिसपर छत्रसाल ने कहा कि आज से पन्ना राज दरबार की मोहर (सील) ‘‘ना ही’’ होगी। तदोपरांत जबतक पन्ना रियासत की सरकार चली, पन्ना रियासत की मोहर ‘‘ना ही’’ उपयोग में लाई गई।
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्थ में महेन्द्र महाराजा रूद्र प्रताप सिंह जूदेव के शासन काल से ब्रिटिश इण्डिया न्यायालयों में हो कानून व्यवस्था लागू थी, वही व्यवस्था पन्ना रियासत में लागू थी। वर्ष 1948-49 में देशी रियासत के विलीनीकरण उपरांत पन्ना बुन्देलखण्ड व रीवा बघेलखण्ड की सभी छोटी-बड़ी रियासतों को मिलाकर विंध्यप्रदेश बना, तब पन्ना जिले की न्यायिक व्यवस्था तत्कालीन रीवा राज्य में प्रचलित कानून लागू किए गए। उक्त न्याय व्यवस्था 31 अक्टूबर 1056 तक मध्यप्रदेश की[...]
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- विविध आर्डर पन्ना १०४० अधिवक्ता लिपिक के मान्यता को स्वीकृति प्रदान करने वावत
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय “बाल कल्याण समिति” का नाम बदलकर “किशोर न्याय समिति” कर दिया गया है।
- प्रशिक्षु न्यायालय के संबंध में विविध आदेश
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